Saturday, February 13, 2021

 

ऑटो ट्रान्सफार्मर क्या है ? प्रकार | efficiency | लाभ-हानि



ऑटो ट्रान्सफार्मर एक ऐसा ट्रांसफार्मर होता है जिसमें एक ही बाइंडिंग का use करके उसे अलग – अलग टर्मिनल में divide किया जाता है तथा इसमें टर्मिनल की संख्या तीन होती है अब इसमें एक ही बाइंडिंग से कुछ भाग Primary winding के लिए use किया जाता है जिसे Input part भी कहते हैं तथा कुछ भाग Secondary winding के लिए use होता है जिसे output part भी कहते हैं इसमें जो Auto शब्द का use होता है जिसे output part भी कहते हैं।

इसमें जो Auto शब्द का use होता है उसका मतलब होता है कि इसमें single coil अकेली work कर रही है। इस प्रकार एक autotransformer two winding transformer के जैसा ही होता है तथा two winding transformer की तरह ही work करता है पर इसमें Primary तथा secondary winding Interrelated होती है।

What is Transformer

एक ऑटो ट्रान्सफार्मर में एक ही winding को Primary और secondary winding के लिए use किया जाता है जैसा की इसके circuit diagram में show हो रहा है।

जैसा की diagram में show हो रहा है AB को Primary winding मानते हैं जिसमें मानाकि N1 (Number or turn) है अब इस winding को Point C से tap करते हैं अब मानाकि part Bc जो हैं वो secondary winding है और इसमें Number of turn N2 है अब अगर V1 Voltage Apply किया जाए Point A और C के बीच में तो प्रत्येक turn का Voltage

       प्रत्येक turn का Voltage = V1/N1 होगा

अब इसी प्रकार जब B व C के बीच का Voltage Calculate करें तो वो V2 होगा जिसकी Value V1/N1 ×N2 होगी

                अर्थात V1/N1×N2=V2

   V2/V1=N2/N1 = Constant = K ———- (1)

अब Portion Bc को secondary winding माना गया है अब हम आसानी से समझ सकते हैं कि जो Constant K है वो Voltage ratio or ऑटो ट्रान्सफार्मर कहलाता है। अब इस प्रकार ये ऑटो ट्रान्सफार्मर तैयार होता है जब secondary terminal अर्थात B और c के बीच जब Coad connect किया जाता है तो इसमें current बहना Start हो जाता है जिसे I2 से दर्शाया गया है तथा इस current की value I2 and I1 के difference के बराबर होती है।

ऑटो ट्रान्सफार्मर के प्रकार :-

  Voltage को कम करने और बढ़ाने के आधार पर Autotransformer को दो type में divide किया जाता है जो कम Voltage के Input से ज्यादा Voltage का output देता है उसे step up transformer तथा जो ज्यादा Voltage Input से कम Voltage का output देता है उसे step down autotransformer कहते हैं इनको अलग – अलग detail में समझते हैं कि ये किस प्रकार काम करते हैं।

Galvanic isolation

(1) Step up ऑटो ट्रान्सफार्मर:-

  जैसा की हम जानते हैं Step up transformer में output Voltage Input Voltage से ज्यादा होता है इसलिए हम source को common winding माना की Part Bc से करते हैं तथा Load को जो कि output है उसे part ABC winding से connect करेंगे अब चूंकि Load पर हमें output प्राप्त होगा जो कि ABC से connect है जिसमें number of turn ज्यादा है और हम जानते है Number of turn जितने ज्यादा होंगे output Voltage भी उतना ही ज्यादा होगा इसलिए Input Voltage की तुलना में output Voltage ज्यादा होगा इसके लिए NS/NP >1

जहाँ

                NS – Number of turn in secondery winding

         तथा NP – Number of turn in Primary winding होगा

(2) Step down ऑटो ट्रान्सफार्मर :-

   अब जैसा की हम जानते है step down transformer में output voltage Input voltage से कम होता है इसलिए हम source को winding ABC से connect करेंगे जिससे की जब हम Load को part Bc winding से connect करेंगे जो कि Low voltage पर होगा तथा output voltage Low voltage होगा क्योंकि part Bc में Number of turn कम होंगे तथा जहाँ Number of turn कम होंगे तो output भी Low होगा Input की तुलना में।

 इसके लिए NS/NP<1 होगा जहाँ  Ns – Number of turn in secondery winding

  NP – Number of turn in primary winding

ऑटो ट्रान्सफार्मर की efficiency :-

          efficiency की बात की जाए तो ऑटो ट्रान्सफार्मर की efficiency single Phase transformer से ज्यादा अच्छी होती है क्योंकि ऑटो ट्रान्सफार्मर में एक ही winding का use होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि Normal single Phase transformer में दो अलग – अलग winding होती है तथा ये दोनों आपस में connected नहीं होती है इनके बीच Mutual Induction होता है तथा Voltage generate होता है और दोनों winding उसी Mutual Induction से उत्पन्न Voltage को share करती लेकिन ऑटो ट्रान्सफार्मर में एक ही winding होती है इसलिए Voltage share होने में दोनों Process follow होती है जैसे direct Conduction तथा Mutual induction दोनों से उत्पन्न Voltage share होता है।

अब हम देखते हैं कि direct conduction process के कारण Voltage share होने से यहाँ कोई Losses नहीं होते हैं इसलिए ऑटो ट्रान्सफार्मर की efficency single Phase transformer की efficiency से ज्यादा अच्छी होती है। efficiency की calculation करने के लिए output Power तथा Input Power की गणना की जाती है तथा efficiency को μ चिन्ह से दर्शाया जाता है इस प्रकार efficiency का formula

                                 efficiency (μ) = Output Power/Input Power

अब हम जानते हैं जो Input Power है वही Output Power में Convert होगी कुछ Losses के साथ इसलिए Input Power को इस प्रकार लिखा जा सकता है।

                                    Input Power = Output Power + Losses

अर्थात efficiency का जो Final fomula होगा वो इस प्रकार होगा

                        efficiency = Output Power/Output Power + Losses

अब इस formula से यह देखा जा सकता है Losses जितने ज्यादा होंगे efficiency उतनी ही कम होगी तथा Losses जितने कम होंगे efficiency उतनी ही ज्यादा होगी।

  ये Loss कई तरह के होते हैं जैसे कि ohmic Loss (iron Loss) या core Loss etc. तथा ये होने वाले Loss ऑटो ट्रान्सफार्मर में कम होते हैं इसलिए इसकी efficiency High होती है। तथा साथ ही इसकी winding में होने वाला Voltage drop single winding के resistance तथा reactance के कारण कम होता है इसलिए Autotransformer का Voltage Regulation भी better होता है।

ऑटो ट्रान्सफार्मर के लाभ:-

(1) ऑटो ट्रान्सफार्मर में एक ही winding होती है इसलिए इसमें कम winding मटेरियल का use होता है।

(2) ऑटो ट्रान्सफार्मर small size का होता है।

(3) इसमें winding में होने वाले Losses कम होते हैं जिसमें ज्यादा efficiency होती है ऑटो ट्रान्सफार्मर की।

(4) ऑटो ट्रान्सफार्मर में एक winding होती है तथा दूसरी winding नहीं होती है जिससे उस winding का Resistance तथा Leakage reactance भी नहीं होगा इसका मतलब हुआ की better Voltage Regulation होगा।

(5) यह सस्ता होता है जिससे इसको use करनें में Cost कम होती है।

(6) ऑटो ट्रान्सफार्मर की help से Voltage को अपनी requirement के अनुसार change कर सकते हैं जिससे ये Laboratory में Experiment के use किये जाते हैं।

Disadvantage of Autotransformer :-

(1) इसकी effective per unit impatance बहुत ही कम होती है। जिससे इसमें short circuit current की संभावना ज्यादा होती है।

(2) इसमें Lower voltage में Breakdown को avoid करनें के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसे circuit की design की जाए जिसमें Low voltage circuit तथा High voltage circuit एक साथ withstand कर पाए।

(3) इसमें Primary और secondery sides के Connection रूप से same होने चाहिए क्योंकि यह Primary or secondery के Phase angle को change करनें में Complications Introduce करते हैं जब कनेक्शन delta / delta बनाया जाता है।

(4) जब दोनों ही winding star / star connection में रहती है तब केवल एक side का earth neutral करना Possible नहीं हो जाता है इस स्थिति में दोनों side को neutral earth किया जाना चाहिए।

(5) जब winding में tapping Provide की जाती है तो इसमें electromagnetic balance को maintain करना बहुत मुश्किल होता है अगर tapping की range बहुत ज्यादा हुई तो फिर इसमें cost बहुत ज्यादा लग जाती है।

ऑटो ट्रान्सफार्मर के उपयोग :-

(1) Autotransformer की मदद distribution system में boosting supply voltage से voltage drop को Compensate किया जा सकता हैं।

(2) ऑटो ट्रान्सफार्मर को बहुत सारी tapping के साथ Induction मोटर तथा Synchronous मोटर को start करनें के लिए use किया जा सकता है।

(3) जहाँ Laboratory में variac की या फिर Continuous variable की जरूरत पड़ती है वहाँ ऑटो ट्रान्सफार्मर का use होता है।

(4) इसकी सहायता से अलग – अलग Voltage के Power system को आसानी से connect किया जा सकता है जैसे की 132 KV और 230 KV systems.

Relay क्या है | भाग | वोर्किंग | प्रकार | उपयोग

 

Relay क्या है | भाग | वोर्किंग | प्रकार | उपयोग

Relay क्या है

Relayक्या है ? यह कैसे वर्क करती है ? इसके भाग जिनमे Coil,Yoke,Armature,Spring एवं कितने प्रकार की होती है और किस जगह उपयोग की जाती है सारी जानकारी इस पेज पर है

Relay एक electronic switch के समान होता है Relay एक  electronic Device है जिसकी मदद से हम किसी भी Circuit को ON/OFF करा सकते है रिले में एक विद्युत चुंबक होता है जो कि किसी power source से जुड़ा होता है तथा विद्युत चुंबक की सहायता से किसी अन्य एक या एक से अधिक सर्किट को ऑन या ऑफ कराया जा सकता है उदाहरण – Thermal overload relay, इस Relay का उपयोग AC Motors की सुरक्षा के लिए किया जाता है। जब Motor overload हो तो ये Relay मोटर को Supply से Disconnect कर देती है। और Motor जलने से बच जाती है।

Relay low voltage पर चलने वाला स्विच है जिससे Supply को ON or OFF कर सकते हैं घरों में सामान्य Switch लगाये जाते हैं जिन्हें हम हाथ से ON or OFF करते हैं But Relay का उपयोग करने के लिए हमें Relay को Supply देनी पड़ती है , तभी वह अपना कार्य करती है जहाँ पर भी Switching का कार्य होता है जैसे कि UPS , Stabilizer  इत्यादि वहाँ पर Relay का उपयोग जरूर किया जाता है। आजकल Switching के लिए Semiconductor Device का इस्तेमाल किया जाता है But आज भी बहुत सी Circuit में Relay का इस्तेमाल किया जाता है।

Relay कैसे काम करती है

Relay कैसे काम करती है

Relay का काम करने का तरीका Very easy है Relay में सामान्यतः एक Coil (कुंडली) लगी होती है जो इसमें लगे Normal Contact (NC) को Normal Open (NO) में बदल देती है जब Relay Off होगी तब Common Terminal सीधा NC Contact से जुड़ जाता है। आपने Common Terminal पर कोई Supply दी तो वह सीधे NC Contact पर जाएगा But जैसे ही हम Relay की Coil को apply करेंगे तो यह Coil active (सक्रिय) हो जाती है और Armature को अपनी तरफ खींच लेती है। जिससे कि Common Terminal अब NC Contact से हटकर NO Contact से जुड़ जाएगा लेकिन जैसे ही Relay की Supply बंद करेंगे तब इसमें लगा Spring वापिस आर्मेचर को अपनी तरफ खींच लेगा और again Common Terminal NC Contact से जुड़ (Connect) जाता है।                                                                  

Relay के Parts

Relay को Fast Switching करनें के लिए उसके Part का सही से काम करना जरूरी है। तब हम Relay के Parts के बारें में जानते हैं। Relay के 5 Parts ( Components or elements ) होते हैं। –

  1. Coil (कुंडली) – Relay की Coil को जब Supply देते हैं। तब वह आर्मेचर को अपनी तरफ खींचती हैं। और NC को NO में बदल देती है। 
  2. Yoke – Relay के बाहरी Plastic भाग को योक कहते हैं।
  3. Contact – Switching के समय NO , NC के रूप में Contact का प्रयोग किया जाता है।
  4. Armature – Relay के अंदर Common Terminal से जुड़ा होता है। 
  5. Spring – Relay के अंदर Spring का अपना अलग अलग स्थान होता है। जब Relay की कुंडली को Supply मिलती है तब आर्मेचर NO से Connect हो जाता है। तथा कुंडली की Supply काटने के बाद Spring आर्मेचर को खींचकर NC से Connect कर देती है।

Relay के प्रकार | Types of Relays

  1. Overload Protection Relay
  2. Latching Relay
  3. Vacuum Relays
  4. Force-Guided Contacts Relay
  5. Multi-Voltage Relays
  6. Time Delay Relay
  7. Mercury-Wetted Relay
  8. Safety Relays
  9. Coaxial Relay
  10. Solid-State Relay
  11. Static Relay
  12. Contactor
  13. Solid-State Contactor
  14. Reed Relay
  15. Polarized Relay
  16. Machine Tool Relay
Relay को दो भागों में बांटा गया है

Latching relay

ये वह Relay है जिसे हम विद्युत Supply करके Activate करते हैं। उसके बाद जिसे जिस Position (स्थिति) पर चली जाती है।  उसके बाद रिले को अगर डीएक्टिवेट यानी कि विद्युत ना दिया जाए तो भी उसकी पोजीशन चेंज नहीं होती यानि कि उसकी पोजीशन वहीं पर रुक जाती है जहां से उसे विद्युत देकर एक्टिवेट किया था विद्युत ना देने के बाद भी उसकी पोजीशन वापस उसी जगह पर नहीं आती है

Non – Latching relay

ये वह रिले है। जिसे विद्युत देने और ना देनें से उनकी Position (स्थिति) बदलती रहती ह

                     Relay के उपयोग –          

एक ही नियंत्रण Circuit द्वारा एक या एक से अधिक Circuits (परिपथों) को ON Or OFF करना।

  1. किसी Circuit से विद्युतीय रूप से बिना जुड़े हुए भी उसे Control करने में सक्षम होती है।
  2. कम पावर खर्च करके बहुत अधिक विद्युत शक्ति को Control कर सकते हैह
  3. सभी  automatic उपकरणों में रिले का उपयोग किया जाता है but  कुछ उपकरणों में रिले का उपयोग नहीं किया जाता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण विधुत प्रेस (electric iron)  है |

Electronic के महत्वपूर्ण Components के नाम

Basic Component

अगर आप इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के विद्यार्थी हैं | या फिर इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग से संबंधित जानकारी पाना चाहते हैं | और इलेक्ट्रॉनिक के नए-नए सर्किट बनाना चाहते हैं | तो आप को सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक के बेसिक कॉन्पोनेंट और Equipment की जानकारी होना बहुत जरूरी  क्योंकि बेसिक कंपोनेंट की जानकारी के बिना या उन कंपोनेंट की वैल्यू राइटिंग और उनके कार्य के बिना आप किसी तरह का कोई भी सर्किट नहीं बना सकेंगे |

इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने के लिए बहुत सारे कॉन्पोनेंट की जरूरत पड़ती है और यह उस सर्किट के ऊपर निर्भर करता है | कि उसमें कितने तरह के कंपोनेंट लगेंगे जैसे कि रजिस्टर कैपेसिटर LED ट्रांजिस्टर डायोड इत्यादि और इनके अलावा कुछ Equipment भी होते हैं जैसे की पावर सप्लाई सिग्नल जनरेटर मल्टीमीटर इत्यादि |तो इन सभी के बारे में जानकारी लें उसके बाद ही आप इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बना सकेंगे | तो आज की इस पोस्ट में आपको इलेक्ट्रॉनिक के Basic Electronic Components और Equipment के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी |

इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट को वैसे तो कुछ श्रेणियों में बांटा गया है

१-Active Electronic Components

२-assive Electronic Components

३- Electromechanical Components 

लेकिन हम यहां पर आपको एक एक करके सभी कंपोनेंट को अलग अलग बताएंगे ताकि आपको हर एक कॉन्पोनेंट की जानकारी हो सके और उसके बारे में आप ज्यादा अच्छे से जान सके |

Integrated Circuits (ICs)

इंटीग्रेटेड सर्किट एक सिंगल डिवाइस या Chip है जो कि Semiconductor Material से बनी होती है और ज्यादातर इसके लिए सिलिकॉन का इस्तेमाल किया जाता है इस इंटीग्रेटेड सर्किट का इस्तेमाल लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में किया जाता है जैसे कि टीवी रेडियो मोबाइल फोन लैपटॉप राउटर मॉडम इत्यादि इंटीग्रेटेड सर्किट भी दो श्रेणियों में बांटे गए हैं एनालॉग इंटीग्रेटेड सर्किट और डिजिटल इंटीग्रेटेड सर्किट

Microcontroller

आधुनिक शब्दावली मैं माइक्रोकंट्रोलर एक छोटा सा कंप्यूटर है जो कि एक इंटीग्रेटेड सर्किट से बनाया जाता है  माइक्रोकंट्रोलर मे हमें RAM, CPU, Input / Output इत्यादि देखने को मिलते हैं यह एक Programmable कॉन्पोनेंट है जिसे एक छोटे कंप्यूटर के रूप में बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक के उपकरण में इस्तेमाल किया जा सकता है

Resistors

प्रतिरोधक (Resistor) एक इलेक्ट्रिकल कॉन्पोनेंट होता है जैसे कि दूसरे डायोड,कैपेसिटर इत्यादि होते हैं.और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में प्रतिरोधक का इस्तेमाल करंट के बहाव को रोकने के लिए या उसे कम करने के लिए किया जाता है. रजिस्टर कई प्रकार के होते हैं इनके काम करने के आधार पर इन को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाता है

मुख्यतः यह 2 प्रकार की होते हैं

1-Fixed Resistor 

2-Variable Resistor

Diodes

डायोड एक Non-Linear सेमीकंडक्टर डिवाइस है क्योंकि करंट को सिर्फ एक दिशा में जाने देती है  डायोड के दो टर्मिनल होते हैं जिंहें एनोड और कैथोड कहा जाता है  नीचे आपको इसका इलेक्ट्रिक सिंबल दिया गया है

एक सामान्य PN Diodes को AC सप्लाई को DC मे बदलने वाले सर्किट में इस्तेमाल किया जाता है. और आपने LED लाइट एमिटिंग डायोड के बारे में तो जरुर सुना होगा. जो कि एक सेमीकंडक्टर डिवाइस है और एक्टिवेट होने के बाद में लाइट छोड़ती है.

Zener Diode और जेनर डायोड वैसे तो एक साधारण डायोड की तरह है लेकिन यह वोल्टेज स्टेबलाइजर का काम करते है

Capacitors

कैपिसिटर एक इलेक्ट्रॉनिक कॉन्पोनेंट है जो कि लगभग सभी सर्किट में इसका इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि हर रेडियो टेलीविज़न इत्यादि| Capacitors में इलेक्ट्रिक चार्ज स्टोर हो जाता है| कैपेसिटर दो कंडक्टर सामान्यतः दो प्लेटों से बना होता है| और इन दोनों प्लेटों के बीच में डाई इलेक्ट्रिक मटीरियल लगाया जाता है जिससे यह अलग हो जाते हैं.जब कैपेसिटर को किसी पावर सोर्स के साथ में जोड़ दिया जाता है तो यह इलेक्ट्रिक चार्ज को स्टोर कर लेता है| और इसके अंदर लगी दोनों प्लेट यह चार्ज स्टोर करने का काम करती है जिसमें से एक प्लेट पर पॉजिटिव चार्ज होता है और दूसरी पर नेगेटिव चार्ज होता है |इसके बारे में ज्यादा जानकारी हमारे एक और पोस्ट में दी गई है जिसका लिंक नीचे दिया गया है|


1 वोल्ट के वोल्टेज पर कैपेसिटर के अंदर चार्ज होने वाले इलेक्ट्रिक चार्ज की Amount को Capacitance कहते हैं| कैपेसिटेंस को मापने की इकाई Farad (F) है.कैपेसिटर के अंदर लगी प्लेट की संख्या को बढ़ाकर इसका Capacitance भी बढ़ाया जा सकता है

                               Inductors.                              

जैसे कि कैपेसिटर इलेक्ट्रिक फील्ड को Energy के रूप में स्टोर करता है| उसी तरह Inductors Magnetic Field को Energy के रूप में स्टोर करता है. इंडक्टर एक तार होता है जो कि Coil के रूप में बनाया गया होता है. इसका इस्तेमाल AC इक्यूपमेंट जैसे कि Filters, Chokes, Tuned Circuits इत्यादि में किया जाता है|

Switches

किसी भी सर्किट को शुरू और बंद या यूं कहें कि ऑन या ऑफ करने के लिए हम स्विच का इस्तेमाल करते हैं. Switches कई प्रकार के होते हैं इनके कार्य के आधार पर इन अलग-अलग श्रेणियों में रखा चाहता है. कुछ स्विच एनालॉग होते हैं और कुछ स्विच डिजिटल होते हैं. आपको घरों में आमतौर पर एक साधारण स्विच देखने को मिलता है|

DC Power Supply

DC Power Supply इलेक्ट्रॉनिक के सर्किट के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है. ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स और सर्किट डीसी पावर सप्लाई से चलते हैं इसीलिए डीसी पावर सप्लाई का बहुत ज्यादा महत्व होता है. इलेक्ट्रॉनिक के ऐसे बहुत सारे उपकरण है जो कि डीसी सप्लाई देते हैं जैसे की AC – To – DC Power Supplies, Linear Regulators, Switching Mode Power Supply इत्यादि|



इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में डीसी पावर सप्लाई 5V से 12V इस्तेमाल होती है. क्योंकि लगभग सभी कॉन्पोनेंट इसी रेंज के ऊपर काम करते हैं|

Batteries

बैटरी एक ऐसी डिवाइस है जो कि केमिकल ऊर्जा को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में बदल देती है और बैटरी का इस्तेमाल मोबाइल फोन लैपटॉप घड़ी इत्यादि में किया जाता है. इसके अलावा और भी कई टेस्टिंग उपकरण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है| आपने अक्सर घड़ियों में देखा हुआ कि उसके अंदर हम सेल का इस्तेमाल करते हैं जो कि 1.5v सप्लाई देता है और यही सेल हम टीवी के रिमोट में इस्तेमाल करते हैं. जहां पर हम दो Cell लगा कर 3v की सप्लाई हमारे टीवी के रिमोट को देते हैं|

बैटरियों को इनके वोल्टेज के आधार पर अलग अलग श्रेणियों में बांटा गया है जैसा कि आप ऊपर फोटो में देख सकते हैं यहां पर हमने तीन प्रकार की बैटरी दिखाई है जिसमें से एक 9 वोल्ट की है, एक 1.5 वोल्ट की है और एक 12 वोल्ट की है. इनका इस्तेमाल इनकी वोल्टेज के आधार पर किया जाता है|

Display Devices

इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की बात करें तो बहुत सारे उपकरण में डिस्प्ले का इस्तेमाल किया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में मुख्यतः दो प्रकार की डिस्प्ले का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है|

16 X 2 LCD

यह डिस्प्ले आपको कैलकुलेटर जैसी डिवाइस में में देखने को मिलेगी. यह एक Alpha – Numeric डिस्प्ले है जिसके अंदर दो Rows और 16 Columns होते हैं और इस डिस्प्ले पर ज्यादा से ज्यादा 32 अक्षर दिखा सकते हैं|

7 – Segment Display

यह डिस्प्ले भी आपको बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में देखने को मिलेगी जैसे की घड़ी, Information Systems इत्यादि. इस डिस्प्ले का इस्तेमाल वहां पर किया जाता है जहां पर हमें नंबर की जरूरत पड़ती है| या अल्फाबेट जरूरत पड़ती है|

Multimeter

वोल्टेज करंट और रेजिस्टेंस मापने के लिए पहले Voltmeter, Ammeter और Ohmmeter का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन उसके बाद में इसे एक बनाकर इसका नाम मल्टीमीटर रख दिया गया और इसके अंदर आप वोल्टेज करंट रेजिस्टेंस बड़ी आसानी से माप सकते हैं लेकिन आजकल और भी एडवांस मल्टीमीटर आ गए हैं जिनके अंदर आप ट्रांजिस्टर को भी चेक कर सकते हैं|

मल्टीमीटर AC और DC दोनों सप्लाई को माप सकता है और आज मल्टीमीटर दो प्रकार के होते हैं डिजिटल और एनालॉग लेकिन आज के समय में डिजिटल मल्टीमीटर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है क्योंकि यह किसी भी कॉन्पोनेंट को बहुत अच्छे से माप सकता है 

इसके अलावा और भी बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट है लेकिन जो महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं वह कॉन्पोनेंट हमने यहां पर आपको बता दिए हैं  यहां पर आपको Resistor, Capacitor, Microcontroller, Inductor, Transformer, Battery, Fuse, Diode/LED (Light Emitting Diode),Transistors, Integrated Circuit, Relays, Switches, Motors, Circuit Breakers के बारे में बताया गया है अगर इसके अलावा आप किसी और कंपोनेंट के बारे में जानना चाहते हैं तो comment करके बताये|

Wednesday, February 12, 2020

UPS & Inverter

UPS और Inverter में क्या अंतर है?


इन्वर्टर और UPS का इस्तेमाल बैकअप Power Supplies के रूप में किया जाता है.आज हम बिजली के उपकरणों पर पूरी तरह से निर्भर हैं जैसे की लाइट फ्रिज पंखे इत्यादि इनके बिना शायद हम 1 दिन भी नहीं रहते हर रोज किसी न किसी प्रकार के इलेक्ट्रिक उपकरण का इस्तेमाल हम करते हैं. इन सभी उपकरणों को चलाने के लिए हमें बिजली की आवश्यकता होती है और यह बिजली हम पावर प्लांट से लेते हैं लेकिन पावर प्लांट से आने वाली बिजली हमें हर समय नहीं मिलती इसलिए हम जब पावर प्लांट की बिजली नहीं होती तब हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए हम इनवर्टर या UPS का इस्तेमाल करते हैं।
इनवर्टर का इस्तेमाल हम हमारे घर के हम सभी उपकरणों पर करते हैं जो कि AC सप्लाई से चलते हैं. लेकिन UPS का इस्तेमाल हम सिर्फ ऐसे उपकरण पर करते हैं जिन में किसी प्रकार का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता हो और जिसमें हमें अपने DATA का खराब होने का खतरा हो जैसे कि कंप्यूटर ,प्रिंटर ,स्कैनर इत्यादि. तो इस पोस्ट में हम आपको What Is UPS (Uninterruptible Power Supply)  In  Hindi ,Inverter  Kya Hai ,UPS Or Inverter Ke Bich Me Kya Antar Hai के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं।
UPS Kya Hai
UPS का पूरा नाम Uninterruptible Power Supply है और इसका Meaning In Hindi “अबाधित विद्युत आपूर्ति” है.ऐसी सप्लाई जिसमें किसी भी प्रकार की कोई भी रुकावट नहीं हो.यूपीएस का इस्तेमाल करने के और भी कई कारण हैं जैसे कि अगर आपके घर में कम या ज्यादा वोल्टेज की सप्लाई आती है तो उसे कंट्रोल करने के लिए भी हम यूपीएस का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे कि हमारे उपकरण पर कोई भी गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
Inverter Kya Hai
इनवर्टर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो कि AC वोल्टेज को DC मे कनवर्ट करता है और इससे बैटरी को चार्ज करता है और फिर DC को AC मे कनवर्ट करता है जिससे कि हम अपने घर के उपकरण चला सकते हैं। यूपीएस में भी यही काम होता है। लेकिन इनके पावर सप्लाई देने का तरीका थोड़ा सा अलग होता है।
UPS VS Inverter
आप को सामान्यत हैं घरों में इनवर्टर देखने को मिलता है लेकिन यूपीएस आपको सिर्फ कंप्यूटर लाइव या फिर किसी पर्सनल कंप्यूटर पर ही देखने को मिलेगा इसलिए इन दोनों को अलग अलग जगह पर इस्तेमाल करने के कई कारण हैं जैसे कीBack Up ,Time Lag, Connection और कीमत इत्यादि नीचे आपको यह सभी को एक अलग अलग बताए गए हैं।
Back Up :
इसका इस्तेमाल कंप्यूटर को कुछ समय तक चलाए रखने के लिए किया जाता है ताकि हम अपने डेटा को सेव कर सकें और अपने कंप्यूटर को बंद कर सके इसलिए यूपीएस का बैकअप 10 से 15 मिनट या उससे थोड़ा बहुत ज्यादा होता है
लेकिन इनवर्टर का इस्तेमाल हम यूपीएस के रूप में नहीं कर सकते इसीलिए इस पर हम बड़े उपकरण ज्यादा लंबे समय तक भी चला सकते हैं और यूपीएस के मुकाबले इनवर्टर पर ज्यादा बड़ी बैटरी का इस्तेमाल होता है जिससे कि हमें यूपीएस के मुकाबले कई गुना ज्यादा बैकअप मिल जाता है।
 Power Supply:
यूपीएस में पहले AC को DC में बदला जाता है जिससे कि बैटरी को चार्ज किया जा सके और फिर बैटरी से ही DC को AC में बदला जाता है जिससे कि हम अपने उपकरण को चला सके तो इस प्रकार यूपीएस में हर समय बैटरी से ही पावर ली जाती है इसीलिए जब कोई भी पावर कट होता है या वोल्टेज कम या ज्यादा होती है तो इसकी आउटपुट पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
इनवर्टर में यूपीएस की तरह है AC सप्लाई को DC मैं बदला जाता है और इससे सिर्फ बैटरी को चार्ज किया जाता है जब तक आप की मेन सप्लाई ON रहती है तब तक आपके इनवर्टर की बैटरी चार्ज होती रहती है और आपका इनवर्टर MAIN को Bypass करके सीधा आउटपुट पर देता है. जिससे कि इनवर्टर का DC To AC कनवर्टर काम नहीं कर सकता. और जैसे ही आप के इनवर्टर की MAIN बंद होती है वह बैटरी से पावर लेता है और उसे DC To AC कन्वर्ट करता है इसीलिए जब आपके घर की पावर सप्लाई बंद होती है तो इन्वर्टर हल्का झटका देता है इसीलिए हम इसे कंप्यूटर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि एक हल्का झटका ही हमारे कंप्यूटर को बंद कर सकता है और हमारी विंडो को करप्ट (Corrupt ) कर सकता है।
Time Lag
तो जैसा कि ऊपर आपको बताया यूपीएस जब काम करता है तो वह बैटरी की पावर पर ही काम करता है. इसका मतलब जब यूपीएस की सप्लाई ऑन होगी या फिर वह होगी उससे यूपीएस के आउटपुट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जिससे कि यूपीएस में किसी प्रकार का कोई भी Time Lag या समय अंतराल नहीं होता।
लेकिन इनवर्टर में लगभग 500 Milliseconds का समय अंतराल होता है. इसीलिए हमें जब मेन सप्लाई बंद होती है या शुरू होती है तो हमें पता चलता है कि कब मेन सप्लाई बंद हो गई और कब मेन सप्लाई शुरू हो गई ।
Use
यूपीएस का इस्तेमाल सीधे उपकरण के ऊपर किया जाता है किसी भी विशेष उपकरण को यूपीएस की जरूरत पड़ती है जैसे कि कंप्यूटर प्रिंटर या स्कैनर।
लेकिन इनवर्टर का इस्तेमाल हम पूरी घर के मेन सप्लाई के साथ में ही स्विच बोर्ड पर करते हैं।
कीमत
वैसे तो यूपीएस आपको मार्केट में 1500 रुपए में मिल जाता है और इनवर्टर आप को कम से कम 8-10 हजार रुपए में मिलता है। लेकिन अगर आप इसके पावर बैकअप और रेटिंग की बात करेंगे तो इस मामले में UPS बहुत महंगा होता है। यूपीएस इसके Machinery Or Circuit के कारण महंगा होता है।
Voltage:
यूपीएस में Automatic Voltage Regulation (AVR) का इस्तेमाल किया जाता है इसीलिए इसकी आउटपुट लगभग 220 Volts पर सेट की जाती है।
लेकिन इनवर्टर में आउटपुट इनपुट के ऊपर निर्भर करेगी जो कि लगभग 230 Volts के करीब होगी ।

Transistor Expalaination

Transistors क्या है कैसे काम करता है
ट्रांजिस्टर एक Semiconductor (अर्धचालक) डिवाइस है जो कि किसी भी Electronic Signals को Amply या Switch करने के काम आता है. यह (Semiconductor ) अर्धचालक पदार्थ से बना होता है जिसे बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जेर्मेनियम का प्रयोग
किया जाता हैं।इसके 3 टर्मिनल होते हैं .जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं .इन टर्मिनल को Base, Collector और Emitter कहा जाता है.
ट्रांजिस्टर कई प्रकार के होते हैं और सभी अलग-अलग तरह से काम करते हैं तो आज की इस पोस्ट में आपको बताया जाएगा कि N-P-N ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है. ट्रांजिस्टर कैसे काम करता है Pnp ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है .लेकिन इससे पहले हम जानेंगे की ट्रांजिस्टर किसने और कैसे बनाया और इस का आविष्कार करने वाला कौन था आखिर किसने ट्रांजिस्टर का आविष्कार करके इलेक्ट्रॉनिक की पूरी दुनिया में एक क्रांति ला दी.
Transistors का अविष्कार कब और किसने किया
सबसे पहले एक जर्मन भौतिक विज्ञानी Julius Edgar Lilienfeld ने 1925 में  Field-Effect Transistor (FET)  के लिए कनाडा में Patent के लिए प्रार्थना-पत्र दिया लेकिन किसी तरह के सबूत ना होने के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक दुनिया को बदलकर रख देने वाले ट्रांजिस्टर का आविष्कार John Bardeen, Walter Brattain और William Shockley ने 1947 में Bell Labs में किया था.

जैसा कि आप जानते हैं ट्रांजिस्टर में इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव किया तो इसका जितना बड़ा बदलाव था उसी तरह इसे बहुत ज्यादा श्रेणियों में बांटा गया नीचे आपको एक डायग्राम दिया गया है जिसकी मदद से आप इसे ज्यादा आसानी से समझ पाएंगे.


ट्रांजिस्टर के आविष्कार से पहले वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल वैक्यूम ट्यूब की जगह किया जा रहा है क्योंकि ट्रांजिस्टर आकार में बहुत मोटे और वजन में बहुत हल्के होते हैं और इन्हें ऑपरेट होने के लिए बहुत ही कम पावर की जरुरत पड़ती है.इसीलिए ट्रांजिस्टर बहुत सारे उपकरण में इस्तेमाल किया जाता है जैसे एम्पलीफायर, स्विचन सर्किट, ओसीलेटरर्स और भी लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
जैसा कि ऊपर आपका फोटो में ट्रांजिस्टर के कई प्रकार दिखाए गए हैं लेकिन इसके मुख्य दो ही प्रकार होते हैं :
1. N-P-N
2. P-N-P
N-P-N ट्रांजिस्टर क्या है
जब P प्रकार के पदार्थ की परत को दो N प्रकार के पदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें N-P-N ट्रांजिस्टर मिलता है. इसमें इलेक्ट्रॉनों Base Terminal के ज़रिये Collector से Emitter की ओर बहते है . 


P-N-P ट्रांजिस्टर क्या है
जब N प्रकार के पदार्थ की परत को दो P प्रकार के पदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें P-N-P ट्रांजिस्टर मिलता है.

यह ट्रांजिस्टर के दोनों प्रकार देखने में तो एक जैसे लगते हैं लेकिन दिन में सिर्फ जो Emitter पर तीर का निशान है उसमें फर्क है PNP में यह निशान अंदर की तरफ है और NPN में यह निशान बाहर की तरफ है तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कौन से ट्रांजिस्टर में तीर का निशान किस तरफ है.इसे याद करने की एक बहुत आसान सी ट्रिक है .
NPN – ना पकड़ ना :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म ना पकड़ ना की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ो मत जाने दो तो इसमें तीर का निशान बाहर की तरफ जा रहा है.
PNP – पकड़ ना पकड़ :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म पकड़ ना पकड़ की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ो लो  तो इसमें तीर का निशान अन्दर तरफ रह जाता है.
तो ऐसे आप इसे याद रख सकते हैं और ट्रांजिस्टर के 3 टर्मिनल होते हैं .जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं .इन टर्मिनल को Base, Collector और Emitter कहा जाता है.
FET (Field Effect Transistor)
FET  ट्रांजिस्टर का दूसरा टाइप है.और इसमें भी 3 टर्मिनल होते हैं. जिसे  Gate (G), Drain (D) और Source (S) कहते है .और इसे भी आगे और कैटेगरी में बांटा गया है. Junction Field Effect transistors (JFET) और MOSFET transistors. इन्हें भी आगे और classified किया गया है . JFET को Depletion mode में और MOSFET को Depletion mode और Enhancement mode में classified किया गया है. और इन्हें भी इन्हें भी आगे N-channel और P-channel में classified किया गया है.
Small Signal Transistors


Small Signal  ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल सिग्नल को Amplify करने के साथ-साथ Switching के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.सामान्यत: यह ट्रांजिस्टर हमें Market में PNP और NPN रूप में मिलता है .इस ट्रांजिस्टर के नाम से ही पता लग रहा है कि यह ट्रांजिस्टर वोल्टेज और करंट को थोड़ा सा Amplify लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस ट्रांजिस्टर का उपयोग लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में किया जाता है जैसे कि LED Diode Driver, Relay Driver, Audio Mute Function, Timer Circuits, Infrared Diode Amplifier इत्यादि .
Small Switching Transistors
इस ट्रांजिस्टर का प्राइमरी काम किसी भी सिग्नल को स्विच करना है उसके बाद में इसका काम Amplify का है. मतलब इस ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल ज्यादातर सिग्नल को स्विच करने के लिए ही किया जाता है. यह भी आपको मार्केट में एन पी एन और पी एन पी रूप में मिलता है.
Power Transistors
ऐसे ट्रांजिस्टर जो हाई पावर को Amplify करते हैं और हाई पावर की सप्लाई देते हैं उन्हें पावर ट्रांजिस्टर कहते हैं. इस तरह के ट्रांजिस्टर PNP ,NPN और Darlington Transistors के रूप में मिलते हैं . इसमें Collector के Current की Values Range 1 से  100A तक होती है . और इसकी Operating Frequency की Range 1 से 100MHz तक होती है .

SMPS

SMPS क्या होता है और यह कैसे काम करता है
किसी भी इलेक्ट्रिकल उपकरण को चलाने के लिए लाइट की जरूरत होती है. लेकिन यह उस उपकरण के ऊपर निर्भर करता है. कि उसे कितने लाइट चाहिए. कितने लाइट में ठीक चलेगा. कितने में खराब हो जाएगा. तो अगर हम किसी भी उपकरण को उसकी कैपेसिटी से ज्यादा लाइट दे देते हैं. तो वह जल जाता है इसलिए सभी उपकरण ठीक से चलाने के लिए उनके अंदर कुछ SMPS सिस्टम लगाया जाता है. जो की लाइट को कम ज्यादा नहीं होने देता है. और अगर होती है.
तो भी वह उस उपकरण के ऊपर प्रभाव नहीं डाल पाएगी. जैसे फ्रीज, TV या यह सभी सीधी 220 या 240 वोल्ट पर चलते हैं. और अगर हम इतना ही बोल्टेज कंप्यूटर के पार्ट को दे देते हैं. तो वह नहीं चल पाएगा और तुरंत जल जाएगा तो कंप्यूटर को कितनी बिजली चाहिए और कौन सी पार्टी को कितनी बिजली चाहिए. इसके बारे में आज हम आपको बताएंगे और इसके साथ-साथ हम आपको बताएंगे कि SMPS क्या होता है SMPS कैसे काम करता है Direct Current और Alternative Current क्या होता है. SMPS कितने प्रकार का होता है. जितने भी कंप्यूटर या लैपटॉप होते है. उनके अंदर SMPS का इस्तेमाल होता है. तो आज हम आपको इसके बारे में पूरी विस्तार से जानकारी देंगे तो देखिए.
SMPS क्या होता है
SMPS क्या काम करता है
SMPS कैसे काम करता है
AC और DC क्या होता है
SMPS कितने प्रकार के होते हैं
SMPS क्या होता है
सच पहले हम आपको बताते हैं कि SMPS क्या होता है SMPS का पूरा नाम स्विचिंग मोड पॉवर सप्लाई होता है. यह एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट होता है. अगर आपने यह डेक्सटॉप के लिए अलग से खरीदा है तो आपको एक छोटा सा डब्बा मिलता है. उसी को SMPS कहा जाता है. और यह कंप्यूटर के अलग-अलग हिस्सों को पावर देता है. जैसे रैम, डीवीडी राइटर, इसके अलावा कंप्यूटर के सभी पार्ट में इसके द्वारा ही अलग-अलग पार्ट्स में बिजली जाती है. और यह उन सभी पार्ट्स के अंदर भेजने वाली बिजली को कंट्रोल करता है. क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया इसके सभी पार्ट डायरेक्ट 220 वोल्ट या 240 वोल्ट के ऊपर तो काम कभी कर भी नहीं सकते हैं क्योंकि वह जल जाएंगे इसलिए SMPS उन को कंट्रोल करता है. और कंप्यूटर के दूसरे सभी भागों में अलग-अलग प्रकार से लाइट को कंट्रोल करता है.
SMPS क्या काम करता है
जब हम सबसे पहले घर के मेन बोर्ड चाहिए लाइट को कंप्यूटर तक ले जाते हैं. तब वह ऐसी अल्टीनेटर करंट रहता है. और जब यह कंप्यूटर के SMPS के पास जाता है तो SMPS उस करंट को DC यानी Direct Current में कन्वर्ट कर देता है. और यह डायोड और कम्पस्टर का इस्तेमाल करके उस Alternative Current को Direct Current में बदल देता है. रेगुलेटर SMPS को कभी ऑन कभी ऑफ करता है. यानी कि यह उसके स्विच मोड को बदलता रहता है यानी कभी ऐसी Alternative Current को Direct Current में बदलता है तो कभी Direct Current को Alternative Current में बदलता है. इसीलिए इसका नाम स्विचिंग पावर सप्लाई रखा गया है.
SMPS कैसे काम करता है
सबसे पहले जो केवल से जो करंट कंप्यूटर के पास आता है तो वह करंट पहले SMPS के पास जो छोटे डिवाइस होते हैं. उनके अंदर होते हुए जाता है तो सबसे पहले AC Filter के पास जाता है. और वहां पर AC Filter करने की प्रक्रिया Natural के बीच में NTC Fuge Line Filter PF Capacitor का इस्तेमाल होता है. Output को रेक्टिफायर और फिल्टर को दिया जाता है. जो कि इसको AC से DC में कन्वर्ट करता है.


जो रेक्टिफायर और फिल्टर कैपेसिटर की मदद चाहिए. समूथ डीसी में कन्वर्ट करता है. इस प्रक्रिया का Output और पूरा DC होता है. और इसको स्विचिंग ट्रांजिस्टर को दिया जाता है. वहां पर हम दो  NPN ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल करते हैं. जो स्विचिंग साइकिल की मदद से फिर एक AC आउटपुट देता है. इसको फिर उसके बाद एक और प्रक्रिया करने के लिए देते हैं जिसका नाम SM ट्रांसफार्मर होता है. फिर इसके बाद एक और वायर रेक्टिफायर और फिल्टर को दिया जाता है. जो कि फिर AC सप्लाई को एक बार स्मूथ डीसी में कन्वर्ट करता है. लेकिन आपको एक बात जरूर याद रखनी है घर में जो ट्रांसफार्मर के पास से करंट आता वह A.C होता है. और जो बैटरी में करंट होता D.C होता है. सारी प्रोसेस के बाद जो आउटपुट निकलता है.
वह तीन भागों में निकलता है उसकी तीन वायर होती है 12 वोल्ट, 5 वोल्ट और 3 वोल्ट लेकिन प्राइमरी सर्किट के रेक्टिफायर और फिल्टर एक आउटपुट स्टार्टर ट्रांसफार्मर से कनेक्ट होता है. जिसको एक एंपलीफायर और IC के साथ कनेक्ट किया जाता है. और इसके तीन आउटपुट वायर होते हैं. एंपलीफायर SMPS का एक ऐसा क्षेत्र होता है. जिसमें पूरा मैनेजमेंट का काम होता है. एंपलीफायर IC से 3 वायर निकलते हैं. एक जोकि पावर ऑन केबल है. दूसरा 5V का करंट देता है.और तीसरा पावर मोड केबल होता है.
और यह तीनों आउटपुट केबल कंप्यूटर के मदरबोर्ड को दिए जाते हैं. स्विचिंग ट्रांजिस्टर एंपलीफायर AC इसी को एक ड्राइवर के साथ कनेक्ट किया हुआ होता है. और इसको एंपलीफायर IC साथ कंट्रोल किया जाता है. दूसरी स्विचिंग सर्किट से एक वायर आता है. जो की एंपलीफायर ऐसी को बताता है की ज्यादा लोड हो रहा है. तो उसी समय ड्राइवर जो स्विचिंग ऑन ऑफ प्रक्रिया को शुरू कर देता है. और जिसे एक नॉर्मल स्पीड पर करंट मिलता रहता है. जो कि 12V, 5Vऔर 3V होता है. इस प्रक्रिया को स्विचिंग पावर मोड सप्लाई बोला जाता है. और इसी की मदद से 12V, 5Vऔर 3V का करंट कंप्यूटर के मदरबोर्ड को मिलता है. इसी तरह से SMPS काम करता है.
Altinator Current और Direct Current क्या होता है
अब हम आपको बताते हैं कि अल्टरनेटिंग करंट और डायरेक्ट करंट क्या होता है. वैसे करंट का मतलब फलों ऑफ चार्ज होता है. यह दो तरह का होता है डायरेक्ट और अल्टरनेटिंग करंट अल्टीनेटर करंट  इसमें चार्ज फलों दोनों तरफ होता है. पॉजिटिव से नेगेटिव और नेगेटिव से पॉजिटिव दोनों दिशाओं में चार्ज होता है. अगर हम डायरेक्ट करंट की बात करते हैं. तो डायरेक्ट करंट का फलों सिर्फ एक ही दिशा में होता है वह सिर्फ नेगेटिव से पॉजिटिव तक होता है.जिसका हम आपको एक आसान सा उदाहरण बताते हैं जिस तरह से हम अपने टीवी रिमोट और घड़ी में सेल का इस्तेमाल करते हैं.
वह सिर्फ एक ही तरफ से करंट निकलता है. क्योंकि जब हम उसको उल्टा डाल देंगे तो वह रिमोट नहीं चलेगा और अगर हम उसको सिर्फ सही दिशा में डालते हैं. तो हमारा रिमोट और घड़ी दोनों काम करने लगेगी तो यह डीसी करंट का एक बहुत ही बड़ा और बहुत ही अच्छा उदाहरण है.अल्टरनेटिंग करंट का उदाहरण जो हमारे घर में ट्रांसफार्म से बिजली आती है वह अल्टरनेटिव बिजली होती है.और हमारे कंप्यूटर को डीसी करंट चाहिए होता है. इसलिए हमारे घर की अल्टरनेटिव बिजली को एसी में डीसी में कन्वर्ट करने के लिए SMPS का प्रयोग किया जाता है.
SMPS कितने प्रकार के होते हैं
अब हम आपको नीचे SMPS के प्रकार बताते हैं वैसे SMPS चार प्रकार के होते हैं जैसे
1. DC To DC Converter
2. Forward Converter
3. Flyback Converter
4. Self Oscillating Flyback Converter

18 w Audio Amplifier

18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट

18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट 18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट एक ऑडियो गिनती कम से कम भागों के साथ एक सभ्य उत्पादन शक्ति दे रहे थे, गुणवत्ता का त्याग किए बिना सक्षम एम्पलीफायर डिजाइन करने। पावर एम्पलीफायर अनुभाग केवल चार ट्रांजिस्टर और एक अलग धकेलना प्रतिक्रिया विन्यास में प्रतिरोधों और संधारित्र के एक मुट्ठी भर को रोजगार लेकिन कतरन (0.04% @ 1W की शुरुआत में साथ 0.08% THD @ 1kHz 8 ओम में एक से अधिक 18W वितरित कर सकते हैं - 1KHz और 0.02% @ 1W - 10KHz) और इस तरह के एक प्रदर्शन को प्राप्त करने के लिए और इस बहुत ही सरल सर्किट के समग्र स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक 4 ओम लोड 18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट 18
W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट में 30W करने के लिए, एक उपयुक्त विनियमित डीसी बिजली की आपूर्ति अनिवार्य है। इस में कोई समस्या है, क्योंकि यह भी बहुत कम स्तर के लिए शोर और preamp की हम रखने में मदद मिलती है और विभिन्न लोड प्रतिबाधा में एक उम्मीद के मुताबिक उत्पादन शक्ति की गारंटी देता है नहीं है। 18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट का कार्य सीधे सीडी प्लेयर, ट्यूनर, और टेप रिकार्डर से जुड़ा जा सकता है। 23 + 23V आपूर्ति से अधिक नहीं है। Q3 और Q4 heatsink पर घुड़सवार किया जाना चाहिए। डी 1 Q1 के साथ थर्मल संपर्क में होना चाहिए। मौन वर्तमान (सबसे अच्छा Q3 Emitter के साथ श्रृंखला में एक Avo-मीटर के साथ मापा जाता है) महत्वपूर्ण नहीं है। कोई इनपुट संकेत के साथ 20 से 30 एमए करने के बीच एक मौजूदा पढ़ने के लिए R3 को समायोजित करें। सुविधा के लिए मौन वर्तमान सेटिंग जोड़ने R8 (वैकल्पिक)। एक सही ग्राउंडिंग हम और जमीन छोरों खत्म करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। J1, P1, सी 2, सी 3 और सी 4 की जमीन पक्षों को एक ही बिंदु से कनेक्ट करें। उत्पादन भूमि पर सी 6 से कनेक्ट करें। तो फिर अलग से बिजली की आपूर्ति भूमि पर इनपुट और आउटपुट आधार कनेक्ट। के लिए 18W ऑडियो पावर एम्पलीफायर सर्किट P1_____________22K लॉग अवयव। पोटेंशियोमीटर (स्टीरियो के लिए दोहरे गिरोह) R1______________1K 1 / 4W अवरोधक
R2______________4K7 1 / 4W अवरोधक
R3____________100R 1 / 4W अवरोधक
R4______________4K7 1 / 4W अवरोधक
R5_____________82K 1 / 4W अवरोधक
R6_____________10R 1 / 2W रोकनेवाला
R7_______________R22 4W अवरोधक (wirewound)
R8______________1K 1 / 2W समयानुकूल Cermet (वैकल्पिक)
C1____________470nF 63V पॉलिएस्टर संधारित्र
C2, C5 _________ 100μF 3V टैंटलम संधारित्र
C3, C4 _________ 470μF 25V विद्युत्-संधारित्र
C6____________100nF 63V पॉलिएस्टर संधारित्र
D1___________1N4148 75V 150mA डायोड
IC1________TLE2141C कम शोर, उच्च वोल्टेज, उच्च धसान-दर Op-amp
Q1____________BC182 50V 100mA NPN ट्रांजिस्टर
Q2____________BC212 50V 100mA मनका बिजली की आपूर्ति
R9______________2K2 1 / 4W अवरोधक
C7, C8 ________ 4700μF 25V विद्युत्-संधारित्र
D2_____________100V 4 ए डायोड पुल
D3________ के लिए PNP ट्रांजिस्टर
Q3___________TIP42A 60V 6A PNP ट्रांजिस्टर
Q4___________TIP41A 60V 6A NPN ट्रांजिस्टर
J1______________RCA ऑडियो इनपुट सॉकेट अवयव____5mm। लाल एलईडी
T1_____________220V प्राथमिक, 15 + 15V माध्यमिक, 50VA मेन ट्रांसफार्मर
PL1____________Male मेन प्लग SW1____________SPST मेन स्विच

Tuesday, February 11, 2020

MPPT & PWM SOLAR DIFFERENCE



                 MPPT & PWM SOLAR



MPPT और PWM Solar Controllers में क्या अंतर है
सोलर पैनल का इस्तेमाल आज बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है. सोलर पैनल इस्तेमाल करने के बहुत सारे फायदे हैं. लेकिन सबसे बड़ा फायदा है कि आप इससे बिजली की बचत कर सकते हैं. लेकिन सोलर पैनल का इस्तेमाल करना हर किसी को नहीं आता सोलर पैनल के लिए क्या-क्या चीजें जरूरी होती है. वह हर किसी को पता नहीं होती. अगर आपके घर में एक सामान्य इनवर्टर है. और उस पर आप सोलर प्लेट लगाते हैं तो उसके बीच में हमें एक कंट्रोलर लगाना पड़ता है.
जो कि हमारी बैटरी को चार्ज करते समय सोलर प्लेट से आने वाली सप्लाई को कंट्रोल कर के हमारी इनवर्टर की बैटरी को चार्ज करता है. लेकिन बहुत सारे लोगों को यह नहीं पता होता कि यह कंट्रोलर लगाना बहुत ही जरूरी होता है. और कुछ लोग अपने घर के सामान्य इनवर्टर की बैटरी पर सीधे सोलर प्लेट लगा देते हैं इसके बहुत सारे नुकसान होते हैं जो कि एक सामान्य व्यक्ति को नहीं पता होता.
इसीलिए हमें इनवर्टर की बैटरी पर सीधे सोलर प्लेट नहीं लगानी चाहिए उसके बीच में कंट्रोलर लगाना चाहिए कंट्रोल भी आपको मार्केट में अलग-अलग प्रकार के देखने को मिलते हैं. लेकिन ज्यादातर दो प्रकार के कंट्रोलर का इस्तेमाल किया जाता है. MPPT और PWM . इन दोनों में से अगर आप पूछेंगे कि कौन सा बढ़िया है. तो इसका एक ही जवाब है. MPPT और अगर आप पूछेंगे कि मैं सस्ता कौन सा है तो PWM सस्ता कंट्रोलर है. तो इन दोनों में से आपको कौन सा इस्तेमाल करना चाहिए यह आप नीचे दिए गए इन के अंतर को पढ़ कर जान जाएंगे.



MPPT और PWM Solar Controllers में क्या अंतर है


 PWM का पूरा नाम Pulse Width Modulationहै. और MPPT का पूरा नाम Maximum Power Point Tracking है. PWM सोलर कंट्रोलर आपके सोलर पैनल से आने वाली सप्लाई को Utilize करके आपकी बैटरी को चार्ज करेगा . MPPT Solar Controllers आपकी सोलर पैनल से ज्यादा से ज्यादा पावर लेता है और Efficiently आपकी बैटरी को चार्ज करता है . इन दोनों के काम करने का तरीका अलग अलग होता है इसीलिए दोनों से मिलने वाली पावर भी अलग-अलग होती है इन में और क्या क्या अंतर है यह नीचे आप को विस्तार पूर्वक बताए गए हैं.

MPPT Solar Controllers PWM Type Solar Controllers

एमपीपीटी सोलर कंट्रोलर आपको 80 Amps तक के साइज में मिल जाएंगे पी डब्ल्यू एम सोलर कंट्रोलर आपको 60 Amps तक की साइज में देखने को मिलेंगे.
MPPT Controller की वारंटी PWM कंट्रोलर से ज्यादा मिलती है क्योंकि यह एक बढ़िया कंट्रोलर है. PWM कंट्रोलर की वारंटी कम मिलती है क्योंकि यह एक साधारण कंट्रोलर है.
MPPT Controllers की आउटपुट इसकी इनपुट सप्लाई से ज्यादा होती है PWM कंट्रोलर की आउटपुट इसकी इनपुट सप्लाई से कम होती है
MPPT Controllers अपनी Charging Efficiency 30% तक बढ़ा सकता है. PWM कंट्रोलर की Charging Efficiency सामान्य होती है
MPPT Controllers की कीमत PWM कंट्रोलर से 3 गुना ज्यादा होती है PWM कंट्रोलर की कीमत MPPT Controllers से कम होती है
MPPT Controllers से बैटरी जल्दी चार्ज होती है MPPT Controllers के मुकाबले PWM कंट्रोलर से बैटरी धीरे चार्ज होती है
MPPT Controller में बैटरी चार्जिंग करने की Efficiency 96 % होती है. PWM कंट्रोलर में बैटरी चार्जिंग करने की Efficiency 70 % होती है.
MPPT Controller की मदद से हम सीधे DC उपकरण को चला सकते हैं PWM कंट्रोलर में हम सीधे तौर पर DC उपकरण को नहीं चला सकते हैं .
धूप कम होने पर भी यह अच्छे तरीके से काम करता है और ज्यादा से ज्यादा पावर बैटरी तक पहुंचाता है धूप कम होने के कारण यह कंट्रोलर बहुत कम मात्रा में पावर बैटरी तक दे पाता है
MPPT Solar Charge Controller 12V-24Volt 20Amp
PWM Solar Controllers न लगाने के नुकसान
सोलर कंट्रोलर की मदद से आप अपने इनवर्टर की बैटरी को ज्यादा अच्छे से चार्ज कर सकते हैं. लेकिन बहुत से लोग सोचते हैं कि हम इनवर्टर की बैटरी बिना कंट्रोलर के भी चार्ज कर सकते हैं. लेकिन अगर आप बिना कंट्रोलर के ही इनवर्टर की बैटरी को चार्ज करेंगे तो आपकी बैटरी खराब होने की संभावना ज्यादा हो जाती है. क्योंकि आपके सोलर पैनल से बैटरी तक जो सप्लाई आएगी वह कम या ज्यादा होती रहेगी जिससे कि आपकी बैटरी सही प्रकार से चार्ज नहीं होगी .तो अपनी बैटरी को अच्छे से और फुल चार्ज करने के लिए हमें कंट्रोलर की आवश्यकता पड़ती है अगर आप हमारी सलाह मानें तो हम आपको MPPT सोलर कंट्रोलर इस्तेमाल करने की सलाह देंगे बाकी आप अपने बजट के हिसाब से PWM सोलर कंट्रोलर भी खरीद सकते हैं.

ध्रुवीकरण के प्रकार

  ध्रुवीकरण के प्रकार आधार पूर्वाग्रह सर्किट इस विषय में हमने कहा था कि हम सभी परिपथों को सक्रिय रूप में लेंगे, ताकि बाद में जब हम एकांतर मे...