Tuesday, February 23, 2021

(Power Generation)

 शक्ति उत्पादन (Power Generation)


पदार्थ का वह गुण जो पदार्थ को कार्य करने की क्षमता प्रदान करे ऊर्जा कहलाती है। शक्ति के उत्पादन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।

ऊर्जा के मुख्य रूप से दो प्रकार के स्त्रोत होते है ।

1. गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत

2.परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत

गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत ऊर्जा स्त्रोतों में भू-तापीय ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सोर ऊर्जा,बायोगैस ऊर्जा तथा ज्वार ऊर्जा को सम्मिलित किया जाता है ।

परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत में कोयला, प्राकृतिक तेल, गैस तथा नाभिकीय ऊर्जा को सम्मिलित किया जाता है ।

कोयले को गुणवता के आधार पर चार भागो में बांटा जाता है –

1.एन्थ्रेसाइड

2.बिटुमिन

3. लिग्नाइट

4.पीट

ईधन एक परम्परागत (Conventional) ऊर्जा स्त्रोत है । ईधन में मुख्य रूप से कार्बन होता है तथा उसके साथ कुछ अन्य तत्व भी पाए जाते है ।

ईधन के प्रकार-मुख्य रूप से ईधन (Fuels) तीन प्रकार के होते है –

1.ठोस ईधन (Solid Fuels)

2.द्रव ईधन  (Liquid Fuels)

3.गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

उत्पति के आधार पर ईधन के प्रकार –

1.ठोस (Solid)

 A. प्राकृतिक ईधन –लकड़ी , पीट और लिगनाइट कोयला

 B.कृत्रिम ईधन-चारकोल

2.द्रव (Liquid)

 A. प्राकृतिक ईधन-पेट्रोलियम (तेल)

 B.कृत्रिम ईधन- पेट्रोल,करोसिन,सोलर सैल , गैस तेल , कोलतार आदि ।

3. गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

A. प्राकृतिक ईधन- प्राकृतिक गैस

B.कृत्रिम ईधन- कोक ओवन गैस ,सेमी कोक गैस ,प्रोडयूसर गैस आदि ।

द्रव ईधन का फ्लेस बिन्दु निम्न होता है । इसका कीलोरिफिक मान उच्च होता है और इसकी श्यानता (Viscosity) सामान्य तापमान पर निम्न होती है ।

ईधन एक परम्परागत (Conventional) ऊर्जा स्त्रोत है । ईधन में मुख्य रूप से कार्बन होता है तथा उसके साथ कुछ अन्य तत्व भी पाए जाते है ।

ईधन के प्रकार-मुख्य रूप से ईधन (Fuels) तीन प्रकार के होते है –

1.ठोस ईधन (Solid Fuels)

2.द्रव ईधन  (Liquid Fuels)

3.गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

उत्पति के आधार पर ईधन के प्रकार –

1.ठोस (Solid)

 A. प्राकृतिक ईधन –लकड़ी , पीट और लिगनाइट कोयला

 B.कृत्रिम ईधन-चारकोल

2.द्रव (Liquid)

 A. प्राकृतिक ईधन-पेट्रोलियम (तेल)

 B.कृत्रिम ईधन- पेट्रोल,करोसिन,सोलर सैल , गैस तेल , कोलतार आदि ।

3. गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

A. प्राकृतिक ईधन- प्राकृतिक गैस

B.कृत्रिम ईधन- कोक ओवन गैस ,सेमी कोक गैस ,प्रोडयूसर गैस आदि ।

द्रव ईधन का फ्लेस बिन्दु निम्न होता है । इसका कीलोरिफिक मान उच्च होता है और इसकी श्यानता (Viscosity) सामान्य तापमान पर निम्न होती है ।

ईधन एक परम्परागत (Conventional) ऊर्जा स्त्रोत है । ईधन में मुख्य रूप से कार्बन होता है तथा उसके साथ कुछ अन्य तत्व भी पाए जाते है ।

ईधन के प्रकार-मुख्य रूप से ईधन (Fuels) तीन प्रकार के होते है –

1.ठोस ईधन (Solid Fuels)

2.द्रव ईधन  (Liquid Fuels)

3.गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

उत्पति के आधार पर ईधन के प्रकार –

1.ठोस (Solid)

 A. प्राकृतिक ईधन –लकड़ी , पीट और लिगनाइट कोयला

 B.कृत्रिम ईधन-चारकोल

2.द्रव (Liquid)

 A. प्राकृतिक ईधन-पेट्रोलियम (तेल)

 B.कृत्रिम ईधन- पेट्रोल,करोसिन,सोलर सैल , गैस तेल , कोलतार आदि ।

3. गैसीय ईधन (Gaseous Fuels)

A. प्राकृतिक ईधन- प्राकृतिक गैस

B.कृत्रिम ईधन- कोक ओवन गैस ,सेमी कोक गैस ,प्रोडयूसर गैस आदि ।

द्रव ईधन का फ्लेस बिन्दु निम्न होता है । इसका कीलोरिफिक मान उच्च होता है और इसकी श्यानता (Viscosity) सामान्य तापमान पर निम्न होती है ।

गैस ईधन को मुख्यतः दो भागो में विभक्त किया जाता है –

1.प्राकृतिक

2.कृत्रिम

प्राकृतिक गैस एक निश्चित सगठन की गैसे होती है जिसको जलाना बहुत सरल होता है तथा यह हवा के साथ अच्छी तरह घुल जाती है ।

कृत्रिम गैसे मुख्य रूप से औधोगिक उपयोग की गैसे होती है । विभिन्न ओवन व् फरनेस (भट्टटी) में इनका उपयोग किया जाता है ।

शक्ति सयंत्र मुख्यतः चार प्रकार के होते है –

1.तापीय शक्ति सयंत्र

2.जल विधुत शक्ति सयंत्र

3.नाभिकीय शक्ति सयंत्र

4.गैस टरबाइन शक्ति सयंत्र

तापीय शक्ति सयंत्र (Thermal Power Plant)


तापीय शक्ति स्टेशनों पर कोयले या ईधन की दहन ऊष्मा से बॉयलरो में उच्च ताप एव दाब पर भाप उत्पन्न की जाती है  इस भाप से भाप टरबाइन या भाप इंजन चलाए जाते है ।

तापीय शक्ति सयंत्र में विभिन्न प्रकार के भाग होते है जो निम्न प्रकार है –

1.कोयला हेण्डलिंग सयंत्र (Coal Handling Plant)

2.चूर्णित सयंत्र (Pulerising Plant)

3.ड्राफ्ट फेन (Draft Fan)

4. बॉयलर (Boiler)

5.राख हेण्डलिंग सयंत्र (Ash Handling plant)

6.टरबाइन (Turbine)

7.इकॉनोमाइजर (Economiser)

8.कूलिंग टावर (Cooling Towers)

9.अतितापक (Superheater)

10.वायु पुर्वातापक (Air Pre-heater)

11.ऑल्टरनेटर (Alternator)

12.फीड वाटर पम्प (Feed Water Pump)

13.बचाव एव नियंत्रण उपकरण (Protection and Control Equipment)

कोयला हेण्डलिंग सयंत्र का कार्य बॉयलर भट्टटी को कोयला प्रदान करना होता है । इसके लिए कोयले को निश्चित मात्रा में माप कर कन्वेयरो के द्वारा हॉपर (Hopper) तक पहुचाया जाता है ।

चूर्णन सयंत्र कोयले को चूर्णित किया जाता है । इसके कई लाभ होते है । इससे ईधन दहन की दर नियंत्रित की जाती है ।

बॉयलर में दहन क्रिया के लिए वायु की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है । दाब में अंतर के कारण वायु का संचारण (Circulation) होता है , उसे ड्राफ्ट कहते है ।

बॉयलर एक बंद बर्तन होता है जिससे पानी को दाब पर भाप में बदला जाता है । बॉयलर को अत्यधिक ऊष्मा अवशोषित करने के उद्येश्य से निर्मित किया जाता है ।

टरबाइन भाप (स्टीम) ऊर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदल देता है । इनका मुख्य लाभ उच्च दक्षता,सरल संरचना, अधिक गति,कम स्थान की आवश्यकता है ।

टरबाइन मुख्य रूप से दो तरह के होते है –

1.आवेग टरबाइन

2.प्रतिक्रिया टरबाइन

तापीय शक्ति सयंत्रो से निकलने वाले गर्म पानी को ठण्डा करने के लिए कूलिंग टावर का उपयोग किया जाता है ।

कूलिंग टावर दो प्रकार के होते है –

1.वेट कूलिंग टावर (Wet Cooling  Tower)

2.ड्राई कूलिंग टावर (Dry Cooling Tower)

तापीय शक्ति सयंत्र के लिए स्थान का चुनाव करते समय निम्न बिन्दुओ पर ध्यान देना चाहिए –

  1. कोयले की उपलब्धता
  2. राख निष्कासन सुविधाए
  3. स्थान की आवश्यकता
  4. भूमि की प्रकृति
  5. जल की उपलब्धता
  6. परिवहन सुविधाए
  7. कारीगरों की उपलब्धता
  8. जन समस्याएं
  9. शक्ति सयंत्र का आकार

जल विधुत शक्ति सयंत्र (Hydro Electric Power Plant)


विश्व में होने वाले कुल शक्ति उत्पादन का का 20% भाग जल विधुत सयंत्र द्वरा प्रदान किया जाता है । अत: तापीय शक्ति सयंत्र (Thermal Power Plant) के बाद शक्ति उत्पादन में जल विधुत सयंत्र का एक महत्वपूर्ण योगदान है ।

जल विधुत शक्ति सयंत्र के स्थान के चयन के समय निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए –

1.पानी की उपलब्धता

2.पानी का संग्रहण

3.पानी का शीर्ष

4.जमीन की लागत

5.जियोलोजिकल सर्वे

6.भार केन्द्र से दूरी

7.जल विधुत शक्ति सयंत्र तक पहुच

8.पानी का प्रदुषण

जल विधुत शक्ति सयंत्र के द्वारा जलीय ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है जिसके अन्तर्गत इसकी सुचारू कार्यप्रणाली और दक्षता के लिए कई प्रबंध किए जाते है ।

बांध के पीछे पानी की एक झील होती है जिसमे पानी एकत्रित किया जाता है, इसे भन्डारण जलाशय कहते है ।यह एक जल विधुत शक्ति सयंत्र की मूलभूत आवश्यकता (Basic Requirement) होती है ।

फोरबे (Forebay), इनटेक (Intake) के ठीक ऊपर एक चोड़ी नहर (Enlarge Canal) के रूप में होता है । इसका मुख्य उद्येश्य निम्न लोड (Low Load) के दोरान अस्थाई रूप से पानी को एकत्रित करना है ।

सर्ज टेंक, एक खुला टेंक (Open Tank) होता है या कई बार इसे एक छोटा जलाशय (Small Reservior)भी कहते है । टरबाइन की गति, भार पर निर्भर करती है और बांध से पानी की सप्लाई विधुत भार के अनुरूप होती है ।

पेनस्टॉक, एक बन्द कन्डयूट पाइप (Closed Conduit Pipe) होती है जो जलाशय या सर्ज टेंक को टरबाइन से जोड़ती है । यह स्टील या संबलित सीमेंट कंक्रीट (Reinforced Cement Concrete, RCC) की बनाई जाती है ।

उत्पल्व मार्ग बांध में आवश्यकता से अधिक पानी की मात्रा को जलाशय से निकलता है, साथ ही उत्पल्व मार्ग बांध में तेरने वाले पदार्थो को बांध के बाहर निकाल देता है ।

बांध के पीछे पानी को हेड रेस कहते है , यह पानी दाब टनल (Pressure Tunnel) तथा पेनस्टॉक से होता हुआ टरबाइन तक पहुचता है तथा टरबाइन को घुमाने का कार्य करता है ।

ड्राफ्ट ट्यूब, एक एयर टाइप पाइप (Air Tight Pipe) होता है जिसके द्वारा टरबाइन से  निकले पानी को टेल रेस में विसर्जित किया जाता है ।

जल की उपलब्धता के आधार पर जल विधुत शक्ति सयंत्र को तीन भागो में बांटा जाता है -

1.बिना जलाशय के शक्ति सयंत्र

2. जलाशय वाले शक्ति सयंत्र

3.रिजरवॉयर वाले शक्ति सयंत्र

भार के आधार पर विधुत शक्ति सयंत्र को दो भागो में बांटा है –

1.आधार भार सयंत्र

2.शिखर भार सयंत्र

शीर्ष के आधार पर शक्ति सयंत्र के तीन प्रकार होते है –

1.निम्न शीर्ष शक्ति सयंत्र

2.मध्यम शीर्ष शक्ति सयंत्र

3.उच्च शीर्ष शक्ति सयंत्र


नाभिकीय शक्ति सयंत्र (Nuclear Power Plant)


परमाणु का समस्त भार जिस भाग पर केन्द्रित रहता है , उसे नाभिक कहा जाता है ।

संन् 1911 में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने नाभिक के अस्तित्व को समझाया था । इसके अनुसार प्रत्येक तत्व में नाभिक होता है तथा नाभिक का निर्माण न्यूट्रॉन व प्रोटॉन से मिलकर होता है ।

प्रोटॉन का भार, न्यूट्रॉन के भार के लगभग बराबर ही होता है । नाभिक में प्रोटॉन को (Z) के द्वारा दर्शाया जाता है । इस पर धनावेश होता है ।

न्यूट्रॉन एक उदासीन कण होता है, जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है तथा इसके चुम्बकीय आघूर्ण ऋणात्मक होते है ।

सामान्यत: नाभिकीय अभिक्रियाए दो प्रकार की होती है

1.नाभिकीय विखण्डन (Nuclear Fission)

2. नाभिकीय संलयन (Nuclear Fision)

किसी नाभिक का दो द्र्व्यमानो में बंट जाना नाभिकीय विखण्डन कहलाता है ।

जब दो हल्के नाभिक आपस में जुडकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है उसे नाभिकीय संलयन अभिक्रिया कहते  है ।

यूरेनियम-233, युरेनियम-235, व् प्लूटोनियम विशिष्ट प्रकार के नाभिकीय पदार्थ होते है ।

न्यूक्लीयर शक्ति सयंत्र के लिए स्थान का चयन करते समय निम्न बांतो पर विशेष ध्यान दिया जाता है –

1.स्थान

2.जल की उपलब्धता

3.यातायात

4.संचारण हानिया

5.उत्सर्जन का निस्तारण

नाभिकीय शक्ति के पूरे प्रबन्ध को निम्न भागो में बाटा जा सकता है –

1.नाभिकीय रियक्टर

2.ऊष्मा स्थानान्त्ररक

3.टरबाइन

4.संघनित्र

5.ऑल्टरनेटर

नाभिकीय रियक्टर एक पात्र होता है जिसमे विखण्डन के ईधन को भरा जाता है ।

नाभिकीय रिएक्टर के सामन्यत: 93U235. 94U239 व् 92U233 तत्व ईधन के रूप प्रयुक्त किए जाते है ।

मंदक एक पदार्थ होता है जो न्यूट्रॉन की गतिज उर्जा को धीमी गति में परिवर्तित करता है तथा इस कार्य हेतु लगा समय बहुत कम होता है ।

नाभिकीय रियक्टर में ईधन के विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनो को कोर से बाहर निकलने से रोकने के लिए परावर्तक का उपयोग किया जाता है ।

नाभिकीय रियक्टर एक पात्र होता है जिसमे विखण्डन के ईधन को भरा जाता है ।

नाभिकीय रिएक्टर के सामन्यत: 93U235. 94U239 व् 92U233 तत्व ईधन के रूप प्रयुक्त किए जाते है ।

मंदक एक पदार्थ होता है जो न्यूट्रॉन की गतिज उर्जा को धीमी गति में परिवर्तित करता है तथा इस कार्य हेतु लगा समय बहुत कम होता है ।

नाभिकीय रियक्टर में ईधन के विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनो को कोर से बाहर निकलने से रोकने के लिए परावर्तक का उपयोग किया जाता है ।

नियंत्रक छड़ो के द्वारा नाभिकीय रियक्टर में उत्पन्न ऊष्मा को नियंत्रित किया जाता है ।

शीतक एक माध्यम है जो रियक्टर कोर में उत्पन्न ऊष्मा को ऊष्मा विनिमयित्र (Heat Exchanger) तन्त्र में पारिचालित कार्यकारी पदार्थ को अन्तरित करता है जिसके फलस्वरूप भाप उत्पन्न होती है ।

टरबाइन (Turbines) 


टरबाइन एक रोटरी यांत्रिक युक्ति है जो कि द्रव या वाष्प प्रावह (Flow) से ऊर्जा को अवशोषित करके उसे प्रत्यावर्तक को देती है जो उसे विधुत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है ।

टरबाइन मुख्य रूप से निम्न प्रकार के होते है –

1.कोल या वाष्प टरबाइन

2.जल टरबाइन

3.गैस या डीजल टरबाइन

वाष्प टरबाइन के द्वारा वाष्प ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है जो प्रत्यावर्तक को चलाती है ।

कोल या वाष्प टरबाइन दो प्रकार के होते है –

1.आवेग टरबाइन (Impulse Turbine)

2.प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine)

जल विधुत शक्ति सयंत्र में टरबाइन की ब्लेडो पर ऊचाई से पानी गिराने पर टरबाइन घूमता है जिससे यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, इस यांत्रिक ऊर्जा को जनित्रो द्वारा विधुत ऊर्जा में बदल दिया जाता है ।

जल विधुत शक्ति सयंत्र के लिए निम्न टरबाइनो का उपयोग किया जाता है –

1.पेल्टन व्हील टरबाइन

2.फ्रोंसिस टरबाइन

3.केपलान टरबाइन

4.प्रोपेलर टरबाइन

गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोत (Non-Conventional Energy Sources)


गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों को नवीनकरणीय ऊर्जा स्त्रोत भी कहते है क्योंकि इनका उपयोग पुनः किया जा सकता है । इन ऊर्जा स्त्रोतों के उदाहरण है – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वार ऊर्जा, बायोगैस ऊर्जा आदि ।

सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा ही सौर ऊर्जा कहलाती है । सूर्य प्रति वर्ग मीटर लगभग 63.11MW ऊर्जा का उत्सर्जन करता है जो की पृथ्वी की कुल प्राथमिक ऊर्जा की आवश्यकता के बराबर है ।

सूर्य से ऊर्जा मुख्य तरीको से प्राप्त कर सकते है जो निम्न है –

1.प्रकाशीय रसायन विधि

2.तापीय प्रभाव

3.प्रकाश वोल्टीय तकनीक

सौर ऊर्जा में तीन प्रकार के पदार्थो का उपयोग किया जाता है –

  1. पारदर्शी पदार्थ

2.  विधुत रोधी पदार्थ

  1. अवशोषक पदार्थ

मनुष्य तथा जानवरों के अपशिष्ट तथा वनस्पतियों को वायु तथा सूर्य की रोशनी की अनुपस्थिति में सड़ाकर बायोगैस का उत्पादन किया जाता है, इसे गोबर गैस भी कहते है।

पवन उर्जा शक्ति सयंत्र के पांच मुख्य भाग होते है –

1.रोटर

2.पवन मिल हेड

3.जनरेटर

4.सपोर्टिंग संरचना

5.नियंत्रक

पवन ऊर्जा को पवन चक्की के घुमने से प्राप्त किया जाता है ।

जब पवन चक्की घुमती है तो जनित्र ऊर्जा उत्पादन  करता है।

पवन चक्की के विभिन्न प्रकार निम्नानुसार है-

1.क्षेतिज अक्षीय पवन चक्की

  (A) मल्टी ब्लेड्स की पवन चक्की

  (B) सेल प्रकार की पवन चक्की

  (C) डच (Propeller) पवन चक्की

  (D) एकल ब्लेड प्रकार की पवन चक्की

2.लम्बवत अक्षीय पवन चक्की

  (A) सेवोनियस पवन चक्की

  (B) डेरियस पवन चक्की

समुद्र (Ocean) अपने अन्दर कई रूपों में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा को समेटे हुए है । यह ऊर्जा विभिन्न रूपों में उसकी लहरों द्वारा (Wave Energy), ज्वार भाटा द्वारा (Tidal Energy) तथा गर्म सतह पानी एव ठण्डे गहरे किए पानी के तापमान के अन्तर द्वारा प्राप्त होती है ।

समुंद्री ऊर्जा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-

1.ज्वार भाटा ऊर्जा

2.लहर ऊर्जा

समुंद्र के जल का सामयिक (Periodic) लहरों में ऊचा उठना व समुद्र तट की तरफ बढ़ना और वापस लौटना क्रमशः ज्वार भाटा कहलाता है ।

समुद्री लहरे भी पवन और समुद्री उर्जा की भांति सौर उर्जा से उत्पन्न होती है । समुद्री लहरे पवन उर्जा के कारण होती है जो की सौर उर्जा के कारण बहती है ।

विधुत शक्ति का संचरण (Transmission of Electrical Power) 


विधुत ऊर्जा को जनरेटिंग स्टेशन से स्टेप-अप ट्रांसफ़ॉर्मर के द्वारा सब-स्टेशन तक पहुचाने को संचरण (Transmission) कहते है ।

विधुत शक्ति को शक्ति सयंत्र से उपभोक्ता तक पहुचाने की प्रक्रिया को विधुत सप्लाई तंत्र कहते है ।

ये सप्लाई तंत्र तीन प्रकार के होते है –

1.शक्ति सयंत्र (Power Station)

2.संचरण लाइन (Transmission)

3.वितरण (Distribution)

जनन केन्द्र (G.S.) में विधुत शक्ति को त्रिकलीय प्रत्यावर्तको (Alternators) के द्वारा उत्पादित किया जाता है जोकि परस्पर समानान्तर क्रम में कार्य करते है ।

प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा संचरण में विधुत शक्ति को शक्ति उत्पादन स्टेशन से वितरण तंत्र तक स्थानान्तत्रित किया जाता है । संचरण में प्रत्यावर्ती धारा तथा दिष्ट धारा दोनों का ही प्रयोग किया जाता है ।

एककलीय प्रत्यावर्ती धारा तंत्र को मुख्य रूप से निम्न भागों में बाटा जाता है-

  1. एककलीय प्रत्यावर्ती धारा तंत्र
  2. एककलीय द्वी - तार (मध्य बिन्दु भूसम्पर्कित) प्रत्यावर्ती धारा यंत्र
  3. एककलीय त्रि- तार प्रत्यावर्ती धारा तंत्र

त्रिकलीय प्रत्यावर्ती धारा तंत्र को मुख्य रूप से निम्न भागो में बाटा जा सकता है –

1.त्रिकलीय त्रि-तार ए.सी. तंत्र

2.त्रिकलीय चार तार प्रत्यावर्ती धारा तंत्र

विधुत संचरण प्रणाली में शिरोपरि लाइन का प्रयोग किया जाता है जिनमे पर्याप्त तनन एव यांत्रिक सामर्थ्य होता है ।

सामान्यतया शिरोपरि लाइन के मुख्य अवयव निम्न होते है –

  1. चालक
  2. आधार
  3. विधुतरोधक तत्व
  4. क्रोस आर्म
  5. अतिरिक्त

विधुतरोधक शिरोपरि लाइनों में चालक व लाइन आधारों के मध्य दूरी बनाए रखते है । अत: किसी भी शिरोपरि लाइन का उचित संचालन विधुतरोधक के सही चुनाव (Selection) पर निर्भर करता है ।

विधुतरोधक विभिन्न प्रकार के होते है । कुछ विशेष प्रकार के विधुतरोधक निम्नानुसार है –

1.पिन प्रारुपी विधुतरोधक (Pin Type Insulators)

2.झुला प्रारुपी विधुतरोधक (SuspensionType Insulators)   

3.विकृति प्रारुपी विधुतरोधक (Strain Type Insulators)

4.शैकल प्रारुपी विधुतरोधक (Shackle Type Insulators)

शक्ति तंत्र में विधुत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जिस माध्यम के द्वारा ले जाया जाता है वह चालक कहलाता है ।

कुछ महत्वपूर्ण पदार्थो के आधार पर चालक निम्नलिखित है –

1.ताम्र चालक (Copper Conductor)

2.एल्युमिनियम चालक (Aluminium Conductor)

3.इस्पात प्रबलित एल्युमिनियम चालक (Steel Reinforced Aluminium Conductor)

4.जस्तीकृत इस्पात चालक (Galivanized Steel Conductor)

5.कैडमियम ताम्र चालक (Cadmium Copper Conductor)


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